शब्द का अर्थ
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					धै 					 :
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					अव्य० [हिं० दुहाई] दुहाई। जैसे—राम-धै।a				 | 
			
			
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					धैताल 					 :
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					वि०=धौताल।a				 | 
			
			
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					धैनव 					 :
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					वि० [सं० धेनु+अञ्] १. धेनु अर्थात् गौ से संबंध रखनेवाला। २. गौ से उत्पन्न या प्राप्त होनेवाला। जैसे—धैनव दुग्ध। पुं० धेनु अर्थात गौ का बच्चा। बछड़ा। 				 | 
			
			
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					धैना 					 :
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					पुं० [हिं० धरना=पकड़ना] १. पकड़ा या ग्रहण किया हुआ काम। २. पकड़ी या ग्रहण की हुई आदत। टेव। ३. जिद। हठ।a स०=धरना (पकड़ना)।a				 | 
			
			
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					धैनुक 					 :
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					पुं० [सं० धेनु +ठक्—क] गौओं का दल। २. काम शास्त्र में, एक प्रकार का आसन या रति-बंध। 				 | 
			
			
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					धैर्य 					 :
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					पुं० [सं० धीर+ष्यञ्] १. मन का वह गुण या शक्ति जिसकी सहायता से मनुष्य कष्ट या विपत्ति पड़ने पर भी विचलित या व्यग्र नहीं होता और शान्त रहता है। संकट के समय भी उद्विग्नता, घबराहट, विकलता आदि से रहित होने की अवस्था या भाव। धीरज। सब्र। क्रि० प्र०—धरना। 				 | 
			
			
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					धैवत 					 :
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					पुं० [सं० धीमत्+अण्, पृषो० म को व] संगीत में, सात स्वरों में से छठा स्वर जो मदंती, रोहिणी और रम्या नाम की तीन श्रुतियों के योग से बनता है। पंचम और निषाद के बीच का स्वर। इसका संकेत-चिह्न ‘ध’ है। विशेष—कहते हैं कि इस स्तर का उच्चारण मूलतः नाभी से होता है; और किसी के मत से घोड़े के हिनहिनाने और किसी के मत से मेढक के टरटराने के समान होता है। यह षाड़व जाति का, क्षत्रिय वर्ण का और पीले रंग का माना गया है और भयानक तथा वीभत्स रस के लिए उपयुक्त कहा गया है। 				 | 
			
			
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					धैवत्य 					 :
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					पुं० [सं० धीवन्+ष्यञ्, न को त] चतुराई। चालाकी। 				 | 
			
			
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